राउत नाच : शौर्य के रस में पगी छत्तीसगढ़ की लोक चेतना की सौंदर्यपूर्ण अभिव्यक्ति
जिस पेड़ की जड़ें कट गई वह धराशायी होगा ही। जिसकी जड़ें जितनी गहरी होगी वह वृक्ष उतना ही मजबूत होगा। हमारे लोक संस्कार ही हमारी मजबूत जड़ें हैं । वियतनाम के भोले आदिवासियों ने युद्ध में अमेरिका को धूल चटा दी । इसकी वजह एक ही थी उन्होनें अपनी जड़ें नहीं छोड़ी थी । किसी ने पूछा नाच गा के युवा पीढ़ी को क्या संदेश मिलेगा? जिन्हें डी जे में भद्दे ढंग से बार पबों में अल्पवस्त्रों में ड्रग के साथ झूमती पीढ़ी आधुनिक लगती हो उनके लिए डंडा लाठी लेकर नाचते ये राऊत नर्तक अति पिछड़े व गँवार लग सकते हैं । क्योंकि वह गांवों की गुड़ी छोड़कर शहरों के पब में रंग चुका है। जो हमारी समृद्ध जातीय परम्परा व गौवंश के संरक्षण से जुड़े द्वापरयुगीन गौरव को जानते हैं वो यादव ,अहीर,यदुवंशी,रावत या राऊत जाति के शूरवीरता की गाथाएं महाभारत में कृष्ण से चंदैनी, आल्हा की लोक आख्यानकों को भी जानते हैं। छत्तीसगढ़ के राऊत नाच अपनी परम्परा में केवल लोकनृत्य ही नहीं बल्कि राउत नाच को शौर्य के रस में पगी छत्तीसगढ़ की लोक चेतना की सौंदर्यपूर्ण अभिव्यक्ति कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
वास्तव में यह
यादव वीरों की अखरा (अखाड़े) में प्राप्त शिक्षा की प्रयोगशाला भी है। अखरा से लेकर काछन, लाठी चालना,मड़ई, बाजार बिहाना और देवारी की बिदाई सब आपस में गुंथे हुए हुए चलते हैं । पागा, कलगी,लाठी,घुंघरू, जलाजल,कौड़ियों की पेटी नर्तक स्वरूप के पोशाक हैं तो लाठी,फरी(ढाल),बठेना योद्धा स्वरूप के प्रतीक। निशान ढोल,टिमकी ,झांझ मंजीरा,मोहरी के साथ बजगिरी इनके रोमांच को बढ़ाते चलते हैं ।
अखरा की पूजा में इस दोहे से देवारी की शुरुआत होती है।
जय गोरईया गौरी के अखरा के गुरु बैताल
चौसठ जोगनी मोर पुरखा के भुजा म रहिबे सहाय।।
फिर अलमस्त होकर गौचारण करने वाला ये समुदाय निकल पड़ता है “देवारी” मनाने। निष्फिक्र निश्चिंत । नृत्य के साथ शौर्य प्रदर्शन भी होता है । जिसमे यदुवंशी लाठी चालते हैं और कई खतरनाक करतब भी दिखाते हैं । शौर्य प्रदर्शन की एक बानगी छत्तीसगढ़ के विवाह संस्कारों में बारात परखाने के समय भी दिखती है । जब वर वधु दोनो पक्ष के लोग लाठी चालने से लेकर वीरता के कई करतब दिखाने की प्रतियोगिता करते हैं। राऊतों के हैरत अंगेज कारनामों को देखकर लोग दांतों में उँगली दबा लेते हैं । रौताही मड़ई, अब विलुप्ति के कगार पर हैं । परंतु बिलासपुर, जांजगीर ,सक्ती, कोरबा में जब जब राउत नाच महोत्सव होते हैं तो लोग हैरतअंगेज कारनामें देखकर दाँतों तले उंगलियां दबा लेते हैं । कृत्रिम प्रोटीन पावडरों के बूते जिम में बनी बॉडी ,अखरा की धूल मिट्टी गोबर से गंधाती असल दूध घी से से सनी खांटी गंवई के राउत के शारीरिक सौष्ठव के पासंग में भी नहीं। ये नई पीढ़ी ने ऐसा पराक्रमी आयोजन खुले मैदान में शायद ही देखा हो। अखरा की परंपरा को जीवित रख इन संस्कारों से अगली पीढ़ी को जरूर जोड़ें जाने की आवश्यकता है ।
हमारे पारम्परिक गीत,नृत्य व कलाएं उस लोकचेतना के संवाहक हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते आई है। छत्तीसगढ़ का राउत नाच इसी लोकचेतना की सौंदर्य रस पगी अभिव्यक्ति है परंतु इस लोक नृत्य को शौर्य पक्ष से अलग करके देखना इस प्राचीन व समृद्ध लोककला का समग्र आंकलन नहीं होगा। यादव ,अहीर,यदुवंशी,रावत या राउत जाति के शूरवीरता की गाथाएं महाभारत में कृष्ण से चंदैनी, लोरिक चन्दा,बाँसगीतों तक और फिर रेजांगला के शहीदों से अहीर रेजिमेंट में समाहित है । हालांकि श्री कृष्ण के उंगली पर गोवर्धन धारण करते समय बृज गोकुल वासियों ने गिरिराज को अपनी लाठियों पर टिकाया था। 7 दिनों बाद सब गोकुल बृज वासी जब सुरक्षित निकले तो सभी ने लाठी उठाकर नृत्य किया था। श्रीमद भागवत के दशम स्कन्ध के 25वे अध्याय के अनुसार देवताओं ने इस अवसर पर शंख व नौबत बजाए थे । इसी गोवर्धन पूजा में मतराही और इसके सप्ताह भर बाद जेठौनी एकादशी से छत्तीसगढ़ में हम देवारी मनाते हैं। इस धार्मिक प्रसंग से न भी जोड़ा जाए तो
यहां मेरा संदर्भ खांटी छत्तीसगढ़ के राउत नाच से है । जो केवल अपने परम्परा में केवल लोकनृत्य ही नहीं बल्कि यादव वीरों की अखरा (अखाड़े) में प्राप्त शिक्षा की प्रयोगशाला भी है। अखरा से लेकर काछन, लाठी चालना,मड़ई, बाजार बिहाना और देवारी की बिदाई सब आपस में गुंथे हुए हुए चलते हैं । राउतों की देवारी की शुरुआत काछन से होती है। इष्ट देव् पर घर का भार सौंप हम देवारी मनाने निकलते हैं । पागा, कलगी,लाठी,घुंघरू, जलाजल,कौड़ियों की पेटी नर्तक स्वरूप के पोशाक हैं तो लाठी,फरी(ढाल),बठेना योद्धा स्वरूप के प्रतीक। निशान ढोल,टिमकी ,झांझ मंजीरा,मोहरी के साथ बजगिरी इनके रोमांच को बढ़ाते चलते हैं । राउत नाच में
नृत्य के साथ शौर्य प्रदर्शन भी होता है । जिसमे यदुवंशी लाठी चालते हैं और कई खतरनाक करतब भी दिखाते हैं । नृत्य रोककर बीच बीच मे बोले जाने वाले दोहों की बानगी देखिये
बैरी सम्मुख देख के कायर जीव डराय
जीव भुजा म राउत के,छाती रहय अड़ाय
जो राऊत इस देवारी में उनके साथ नहीं आते उनके लिए वे कहते हैं ।
कूकरी के पिलवा रनभन रनभन बिलवा खाय
राउत के पिला हस कब तक रहिबे लुकाय
राउत घर जनम लेहे आउ नइ लेहे देवारी के नाम
आगू जनम म घोड़वा बनबे,तोर मुँह होही लगाम
राउतों के शौर्य प्रदर्शन की एक बानगी छत्तीसगढ़ के विवाह संस्कारों में बारात परखाने के समय भी दिखती है । जब वर वधु दोनो पक्ष के लोग लाठी चालने से लेकर वीरता के कई करतब दिखाने की प्रतियोगिता करते हैं। और कई पहलू हैं राउत नाच से जुड़े हुए जिन पर चर्चा फिर कभी करेंगे ।
हालांकि अपने जड़ों व समृद्ध परम्पराओं से कटने के इस कठिन दौर में नई पीढ़ी इन सब से अछूती हो चली है । जिनके विलुप्ति का संकट चहुंओर है। फिलहाल देवारी के त्योहार में राउत व्यस्त हैं।
रंग माते रसिया छापर माते गाय
अपन देवारी म अहिरा माते
घर बन नइ सुहाय।
छत्तीसगढ़ की अन्य लोक परम्पराओं की तरह राऊत नाच भी जन कल्याण व लोक मंगल की भावना से परिपूर्ण हैं। जब वे नृत्य की समाप्ति करते हैं तो इस आशीष के साथ विदा लेते हैं।
जैसे भइया लिये दिये, वइसे झोंको असीस हो
अन्न धन घर भरे रहे,जुग जियो लाख बरिस हो
दीपक कुमार यादव
व्याख्याता शा उ मा वि मड़वा ब जिला जांजगीर चाम्पा*