Mahant family will always be indebted to Janjgir, Korba and Chhag: Dr. Mahant

छत्तीसगढ़िया अस्मिता के रक्षक जननेता – स्व बिसाहूदास महंत

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जयंती के 100 वर्ष पूरे होने पर विशेष

जिन पुरोधाओं ने छत्तीसगढ़ के अस्मिता की रक्षा की , हमारे स्वाभिमान को जगाया और समाज के आख़िरी पंक्ति पर खड़े लोगों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया उन महापुरूषों में से स्व बिसाहूदास महंत का नाम सदैव आदर से लिया जाएगा ।
है समय नदी की धार कि लोग बह ज़ाया करते हैं
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इतिहास बनाया करते हैं

आज ही के दिन सौ वर्ष पूर्व यानी 1 अप्रैल 1924 को उनका जन्म तत्कालीन बिलासपुर ज़िले के सारागाँव में हुआ था । वे संत कबीर के सच्चे अनुयायी थे ।
उन्हें अजातशत्रु कहा जाता है। सबसे हिल मिल कर रहने के उनके नायाब गुण ने उन्हें अजात शत्रु बनाया । ऐसा व्यक्ति जिसका कोई शत्रु न हो ! राजनीति में विरोधी व शत्रु कोई भी और कभी भी बन जाते हैं लेकिन अपने सरल निश्छल और सद्व्यवहार से विरोधियों का भी दिल जीतने की कला बिसाहू दास महंत जी में थी। श्री गिरिराज किशोर, राजमाता विजयाराजे सिंधिया जैसे अन्य राजनीतिक विचारधारा के नेता भी उनके अतिथि सत्कार व सम्मान से अभिभूत रहे और उन्होंने स्व बिसाहूदास महंत जी की सराहना करके से स्वयं को नहीं रोक पाए।

01 अप्रैल को उनके जन्म के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। 01 अप्रैल 1924 को जन्में बिसाहूदास सारागांव के संपन्न कृषक कुंजराम – श्रीमती गायत्री की छठी संतान थे। सारागांव के बाद वे बिलासपुर में पढ़े। मेधावी तो वे थे ही साथ ही अपने गुणों योग्यता और खेलों में निपुण होने के कारण वे सब के प्रिय पात्र बनते चले गए।1939 से ही वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे वानर सेना के रूप में सत्याग्रहियों को सूचना देते थे। नागपुर के मोरिस कालेज में पढ़ते हुए महात्मा गांधी के आह्वान पर वे भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े और नागपुर के जिला न्यायालय में तिरंगा फहरा कर जेल हो आये। समय का फेरा ऐसा रहा कि 40 एकड़ के सम्पन्न कृषक के घर मे बीमारी के प्रकोप ने उनकी आर्थिक स्थिति को डांवाडोल कर दिया। वे कॉलेज पढ़कर जब वापस लौटे तो हालात बदल चुके थे उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा । 20 जून 1950 को वे नगर पालिका चाम्पा में अध्यापक हो गए हालत सुधरने लगे पर विधि ने उनके लिए इससे बड़ा जनसेवा का मार्ग तय किया था।

कांग्रेस ने उन्हें बाराद्वार विधानसभा से टिकट दी । वे चार एकड़ जमीन बेचकर चुनाव लड़े व जीते । वे सीपी एंड बरार विधानसभा के सबसे कम उम्र के विधायक रहे मप्र गठन के बाद वे कैबिनेट मंत्री बने उन्होनें अपने कार्यकाल में कई उल्लेखनीय कार्य किये। वे जीवन पर्यन्त विधायक रहे उन्होंने तत्कालीन नवागढ व चाँपा विधान सभा का प्रतिनिधित्व किया । वे सच्चे जनसेवक थे । इसलिए वे अपराजेय योद्धा रहे। 1977 में जनता लहर की आंधी में समस्त कांग्रेस धराशायी हो रही थी वहां बीमारी व बेड में रहकर वे चाम्पा विधानसभा से निर्वाचित हो गए। वे कैबिनेट मंत्री भी रहे उन्होंने छेत्र विकास की अनेक योजनाओं को पूरा कराया जिसके कोरबा के बाँगो बांध उल्लेखनीय है । 8 सितम्बर 1977 को वे मप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने और अपनी संगठन क्षमता से पार्टी को संजीवनी दी। दिल का दौरा पड़ने के बाद 23 जुलाई 1978 को उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गयी। वो परमसत्ता का अंश थे उसी में समा गए। उनके पुत्र डॉ चरणदास महंत सफल जनसेवक हैं यह स्व बिसाहूदास जी के प्रदत संस्कारों का ही परिणाम है कि उनकी पुत्रवधू श्रीमती ज्योत्स्ना महंत ने भी इसी पंथ को चुनकर उनके आदर्शों को अपनाया। छत्तीसगढ़ के इस संत को जन्मशती वर्ष के पूरा होने पर khaskhabar.news परिवार की ओर से आदरांजलि…