कला में कलाकार खुद को उजागर करता है कलाकृति को नही-डॉ. संजय गुप्ता

कोरबा छत्तीसगढ़

मिट्टी की विभिन्न आकर्षक एवं रचनात्मक कलाकृति बनाकर हर्षित हो रहे समर कैंप के विद्यार्थी

कोई बना रहे दीया, गुलदस्ते, तो कोई बना रहे शुद्ध पेयजल हेतु मिट्टी के मनमोहन घड़े

इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में संचालित समर कैंप में बच्चे सीख रहे हैं मिट्टी के विभिन्न कलाकृति बनाना ,पॉटरी एक्टिविटी के तहत आकर दे रहे अपनी रचनात्मक सोच को

दीपका – कोरबा I
मृत्तिका तथा अन्य सिरैमिक पदार्थों का उपयोग करके ‘बर्तन एवं अन्य वस्तुए बनाना कुंभकारी कहलाता है। इन बर्तनों को कठोर और टिकाऊ बनाने के लिए उच्च ताप पर पकाया जाता है। कुंभकारी एक व्यापक शब्द है और इसके अन्तर्गत मिट्टी के बर्तन, पत्थर के बर्तन तथा चीनी मिट्टी के बर्तन एवं वस्तुएँ बनाने का कार्य सभी आ जाते हैं। इन वस्तुओं को ‘मृद्भाण्ड’ (शाब्दिक अर्थ – मिट्टी के बर्तन) कहते हैं। इस कार्य को करने वाले को कुम्हार कहा जाता है और जिस स्थान पर इन्हें बनाया जाता है उसे चाक (पॉटर) कहते हैं। अमेरिकन सोसाइटी फॉर टेस्टिंग एंड मैटेरियल्स की परिभाषा के अनुसार पॉटरी का अर्थ “तकनीकी, संरचनात्मक और दुर्दम्य उत्पादों के अतिरिक्त आग में पकने वाले मृत्तिकाशिल्प वाले वो सभी बर्तन शामिल होते हैं जिन्में मृदा का उपयोग हुआ है।”[1] पुरातत्वशास्त्र में, मुख्यतः प्राचीन और प्रागैतिहासिक काल में “पॉटरी” शब्द जलपात्रों के लिए काम में लिया जाता है और समान पदार्थ से निर्मित मूर्तियों इत्यादि को टेराकोटा कहा जाता है।
कुम्भकारी मानव इतिहास के सबसे पूराने आविष्कारों में से एक हैं, जिनकी शुरुआत नवपाषाण युग से आरम्भ हुआ। चेक गणराज्य में ग्रेवित्तियन संस्कृति की वीनस ऑफ़ डोलनी वॉनस्टाइन की छोटी मूर्तियाँ लगभग 29000 से 25000 ई॰पू॰ की हैं।[2] चीन के यांग्शी में 18000 ई॰पू॰ के बर्तन मिले हैं। इनके अतिरिक्त जापान में नवपाषाण काल के शुरुआती दिनों (10500 ई॰पू॰) की कलाकृतियों की खोज की गयी है।[3] रूस में (14,000 ई॰पू॰),[4] उपसहारा अफ़्रीका (9,400 ई॰पू॰),[5] दक्षिण अमेरिका (लगभग 9,000-7,000 ई॰पू॰),[6] और मध्य पूर्व में (लगभग 7,000-6,000 ई॰पू॰) में भी पूरानी कलाकृतियाँ मिली हैं।
मिट्टी के बर्तनों को वांछित आकार की वस्तुओं में एक सिरेमिक बॉडी बनाकर और उन्हें अलाव, गड्ढे या भट्ठे में उच्च तापमान पर गर्म करके बनाया जाता है। मिट्टी के बर्तन सबसे पुराने मानव आविष्कारों में से एक है। इसका आविष्कार नवपाषाण काल से पहले और नवपाषाण काल में किया गया। मिट्टी के बर्तन, सबसे शुरुआती मानव आविष्कारों में से एक, मिट्टी से बनी वस्तुओं को संदर्भित करता है जिन्हें बनाया, सुखाया और पकाया जाता है। यह प्रक्रिया मिट्टी के एक साधारण ढेले को एक मजबूत, उद्देश्यपूर्ण और अक्सर सुंदर वस्तु में बदल देती है। यह एक ऐसा शिल्प है जो कलात्मकता के साथ कार्यक्षमता का मेल कराता है और व्यावहारिक से लेकर औपचारिक तक – उपयोग की एक विस्तृत श्रृंखला पेश करता है। अपने समृद्ध इतिहास और जीवंत विविधता के साथ भारत की मिट्टी के बर्तन संस्कृति (Pottery Culture of India in Hindi) पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। यह सिर्फ एक शिल्प नहीं है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत, कलात्मक संवेदनशीलता और ऐतिहासिक विकास का एक जीवंत प्रमाण है।
इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में संचालित समर कैंप में प्रतिभागी मिट्टी की विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां बनाना सीख रहे हैं। विशेष शिक्षक के द्वारा विद्यार्थियों को मिट्टी के विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां बनाने की कला सिखाई जा रही है जिनमें मिट्टी के दिए, गमले,फ्लावर पॉट,मूर्तियां, घड़े,विभिन्न आकार के बर्तन, बर्तनों में कलाकृतियां, कलश,गुल्लक,कुल्हड़,खिलौने इत्यादि बनाने का कुशल प्रशिक्षण दिया जा रहा है। समर एमपी विद्यार्थी भी बड़ी टैली नेट से विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को बुखार से पूछते हैं और अपनी जानकारी में इजाफा करते हैं।समर कैंप के प्रशिक्षणार्थी भी क्रमशः विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों को अपने – अपने हाथों से आकर देते हैं। प्रशिक्षक के द्वारा उन्हें सिखाया जाता है कि किस प्रकार चाक में मिट्टी के ऊपर अपने हाथ को स्थापित करना है। उन्हें बताया जाता है कि हम कच्ची मिट्टी को जैसा आकार देंगे वह वैसे आकार में ढल जाता है। प्रशिक्षक ने समर कैंप के प्रशिक्षणार्थियों को बताया कि चाक के मध्य में मिट्टी को पहले तैयार करके रखा जाता है। फिर मध्य में रखकर चाक को घुमा दिया जाता है ।जैसे-जैसे मिट्टी ऊपर आती है, वैसे-वैसे हम अपने हाथों से मिट्टी को आकार देते हैं। कभी हम दिए बनाते हैं ,कभी गमले बनाते हैं ,तो कभी फूलदान बनाते हैं या घड़े बनाते हैं। सब मिट्टी का और हाथों का खेल है। हमारे दिमाग ,हमारे विचार की उपज मिट्टी में साकार रूप में हमें दिखाई देती है ।हम जैसा चाहते हैं वैसा आकार मिट्टी को दे सकते हैं ।यह हमारे सोच और विचार की उपज होती है।
इंडस पब्लिक स्कूल दीपका के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता ने कहा कि हमारा उद्देश्य बच्चों में छिपी प्रतिभा को निखारना है।हमारी कोशिश रहती है कि बच्च हर कला में पारंगत हो।अंततः उनका सर्वांगीण विकास करना ही हमारी प्राथमिकता है।समर कैंप के हर एक्टिविटी में विद्यार्थियों के टैलेंट को तराशने का कार्य बखूबी किया जा रहा है,जिससे आस पास के सभी विद्यालयों के विद्यार्थी लाभान्वित हो रहे हैं। कला मानव जीवन का अभिन्न अंग रहा है।चाहे वह कोई भी कला होऔर यदि आप में कला है तो आप कभी बेरोजगार नहीं रह सकते। पॉटरी भी बहुत उम्दा कला है।इस कला से हम अपनी धरती मां,अपनी मिट्टी से जुड़ते हैं। माटी हमें जिंदगी की सच्चाई से अवगत कराता है। कहा भी गया है माटी कहे कुम्हार से तु क्यों रौंदे मोहे,एक दिन ऐसा आएगा मैं रौदुंगी तोहे।