शिक्षा को 64 कलाओं का संगम माना गया है, इसमें विज्ञान-इंजीनियरिंग व मेडिकल ही नहीं, चित्रकला, संगीत भी शामिल हैः प्रो यूके श्रीवास्तव

कोरबा छत्तीसगढ़

कोरबा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में चुने गए संकाय के विषय ही पढ़ने की बाध्यता को दूर करने का प्रयास किया गया है। यानि विज्ञान संकाय का स्टूडेंट कला या काॅमर्स ले सकता है तो कला या काॅमर्स के स्टूडेंट भी विज्ञान के विषय लेकर पढ़ाई कर सकते हैं। यहां ध्यान देने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने काॅलेज की पढ़ाई में तीसरे साल पीजी कर सकते हैं और चैथे साल आॅनर्स कर सकते हैं। इतना ही नहीं, आॅनर्स कोर्स के बाद रुचि हो तो सीधे पीएचडी में प्रवेश ले सकते हैं। पर इस ओर कदम रखने के लिए पात्रता की सिर्फ दो शर्तें पूरी करनी होगी। आपको आॅनर्स या पीएचडी के अपने पसंदीदा विषय में 80 क्रेडिट अंक अर्जित करना होगा और चैथे साल में कम से कम 7.5 सीजीपीए भी अर्न करना होगा। याद रखें कि आप जो भी संकाय लेकर पढ़ रहे हों, अपने एक पसंदीदा विषय, जिसमें आॅनर्स या पीएचडी की प्लानिंग की हो, उसमें परफेक्ट होना होगा। एनईपी से जुड़ी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए या इसी तरह महत्वपूर्ण बातों को जानने के लिए आप आर्डिनेंट 159 का अवलोकन कर सकते हैं।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति से जुड़ी यह गूढ़ बातें शुक्रवार को ई राघवेंद्र राव स्नातकोत्तर विज्ञान महाविद्यालय , सीपत रोड बिलासपुर के प्राचार्य डाॅ यूके श्रीवास्तव ने साझा की। प्रोफेसर श्रीवास्तव कमला नेहरु महाविद्यालय में अल्प प्रवास पर पहुंचे थे। इस अवसर पर कमला नेहरु महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ प्रशांत बोपापुरकर के विशेष आग्रह पर उन्होंने वर्कशाॅप को संबोधित किया। महाविद्यालय के कंप्यूटर साइंस विभाग की अत्याधुनिक प्रयोगशाला में अतिवरिष्ठ शिक्षाविद डाॅ श्रीवास्तव ने प्राध्यापकों एवं छात्र-छात्राओं को मार्गदर्शन प्रदान करते हुए ढेर सारी जानकारियां प्रदान की।

डाॅ यूके श्रीवास्तव ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भूमिका में एक महत्वपूर्ण बात लिखी गई है। इसमें बताया गया है कि वाणभट्ट ने कादम्बरी लिखी थी और कादम्बरी में शिक्षा को 64 कलाओं का संगम माना गया है। इन 64 कलाओं में विज्ञान भी है, इंजीनियरिंग, मेडिकल साइंस भी है और इन सब के साथ-साथ कारपेंटर, टेलरिंग, म्युजिक, चित्रकला जैसे विषय भी शामिल हैं। उनका यह कहना है कि जो इन सब कलाओं को जो सीखता है वह शिक्षित है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने के पहले तक के करिकुलम में आपको बांध दिया जाता था कि बीए ले लो, बीएससी या बीकाॅम ले लो। इसमें पाबंदियां थी कि बीए वाला कला के विषय ही पढ़ेगा, बीएससी का स्टूडेंट जीवविज्ञान, बाॅटनी या कैमिस्ट्री-फिजिक्स ही पढ़ सकता है। 12वीं पास करने वाला बच्चा कला-काॅमर्स पढ़ना चाहता हो तो भी पैरेंट्स जोर देते कि नहीं, बीएससी ले लो, क्योंकि उसमें ज्यादा स्कोप है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में इन्हीं पाबंदियों को दूर करने का प्रयास किया गया है।

वैल्यू एडेड कोर्स (वीएसी)- जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए खुद को केवल किताबी ज्ञान तक सीमित रखना पर्याप्त नहीं है। व्यवहारिक ज्ञान और मोरल एजुकेशन भी आवश्यक है। ऐसी शिक्षा जो आपके व्यवहार में उपलब्ध है, यानि जो चीजें आपके व्यवहार में आना आवश्यक है, वह बताई जाती हैं।
दूसरी बात आई है, जिसमें आपमें कौशल का विकास करना ही उद्देश्य है। आप इतने स्किल्ड रहें कि आप खुद आगे बढ़ें और अपने साथ चार लोगों को आगे लेकर बढ़ें। आपके अंदर कोई न कोई कौशल रहे।

तीसरी बात है जीई, यानि जेनरिक इलेक्टिव कोर्स। इसमें जो आपने मेन कोर्स लिया है, उसके अलावा आट्र्स-काॅमर्स या अन्य कोई विषय हो सकता है, जिसमें आपकी रुचि हो। इसमें साइंस वाला भी आट्र्स या काॅमर्स के विषय ले सकता है और इसी तरह आट्र्स-काॅमर्स का स्टूडेंट साइंस के विषय लेकर भी पढ़ सकता है।

1967 के आस-पास पहली शिक्षा नीति आई थी, जो कुछ साल पहले तक चलती रही। उसके बाद 1986 में आई शिक्षा नीति में बड़े बदलाव किए गए पर बहुत ज्यादा वैश्विक परिवर्तन देखने को नहीं मिले थे। इसके बाद सारे देश में जो यूनिफाइड करिकुलम था पर अभी भी जो परिवर्तन वांछित थे, वह देखने को नहीं मिला। इसका परिणाम यह रहा कि देश में लगातार बेरोजगारी बढ़ती गई। उसकी वजह थी, कि जितने भी शिक्षा नीतियां लाई गईं, उनका उद्देश्य केवल यह था कि ग्रेज्युएट युवा तैयार करना। डिग्री प्राप्त कर युवा नौकरी की तलाश में जुट जाते। अभी भी हमारे देश में बेरोजगारी काफी है, पर उसके पीछे केवल सरकार ही जिम्मेदार नहीं है। बेराजगारी का कारण हम स्वयं भी हैं, दरअसल हम पढ़-लिख तो गए हैं, पर स्किल्ड नहीं हैं। नौजवान ग्रेज्युएट हैं, पीजी की डिग्री तो है पर उनके पास वह कौशल नहीं है, जिसकी कंपनियों को जरुरत है।