सुकमा । कृषि विज्ञान केंद्र में घास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह में बताया गया कि गाजर घास विदेशी घास है जो मानव एवं अन्य जीवों के स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि पर्यावरण को भी आघात पहुंचा रहा है। इसके स्पर्श मात्र से ही खुजली, एलर्जी और चर्म रोग एवं अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियां पैदा हो सकती हैं। यह एक शाकीय पौधा है जो किसी भी वातावरण में तेजी से उगकर मानव एवं प्रकृति के सभी जीवों के लिए गंभीर समस्या बनती जा रही है। इसके उन्मूलन के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है। इसी तारतम्य में कृषि विज्ञान केन्द्र, सुकमा द्वारा 16 से 22 अगस्त 2024 तक गाजर घास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह मनाया गया। इसके अंतर्गत पौध रोग विशेषज्ञ राजेन्द्र प्रसाद कश्यप, कार्यक्रम सहायक मत्स्य डॉ. संजय राठौर एवं चिराग परियोजना के एस.आर.एफ. यमलेश्वर भोयर ने पुजारीपाल, धोबनपाल, गुडरा, गंजेनार, कवासीरास, नीबूपदर एवं मुरतोन्डा इत्यादि गांवों में जाकर किसान भाईयों एवं स्कूली छात्रों को गाजर घास के उन्मूलन हेतु जागरूक किया। उन्होंने बताया कि इस खरपतवार में ऐस्क्युटरपिन लेक्टोन नामक विषाक्त पदार्थ पाया जाता है, जो फसलों की अंकुरण क्षमता और विकास पर विपरीत असर डालता है। इसके परागकण पर परागित फसलों के मादा जनन अंगों में एकत्रित हो जाते है, जिससे उनकी संवेदनशीलता समाप्त हो जाती है। दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता को भी कम करता है।