बिलासपुर । बिलासपुर जिले के तिफरा स्थित अंध-मूक, बधिर शाला के नेत्रहीन शिक्षक देवेंद्र कुमार चंद्रा ने शिक्षा की दुनिया में मिसाल कायम की है। उनकी स्मार्ट क्लास और बच्चों के प्रति समर्पण सुर्खियों में हैं। शिक्षा के प्रति उनका सेवाभाव देखकर लोग उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। समाज में खुद नेत्रहीनता के कारण भेदभाव का सामना करने वाले चंद्रा ने बच्चों के लिए शिक्षा में कोई कमी नहीं छोड़ी है और उन्हें काबिल इंसान बनाने का बीड़ा उठाया है।
देवेंद्र कुमार चंद्रा जन्म से नेत्रहीन हैं, लेकिन उनके सपने और हौसले बेहद मजबूत हैं। भले ही जन्म से ईश्वर ने देवेंद्र कुमार चंद्रा को नेत्रहीन ही धरती पर भेजा है, लेकिन उनके हौसले, सपने और भरोसे के आगे ईश्वर को भी झुकना पड़ा है। ईश्वर की ऐसी कृपा हुई कि, उन्हें लो विजन होता है। लेकिन इस लो विजन के लिए भी उन्हें पूर्ण रूप से अपने चश्मे पर ही निर्भर रहना पड़ता है। उन्होंने एमए की डिग्री प्राप्त करने के साथ देहरादून से विशेष बीएड कोर्स किया और 2005 में ब्लाइंड बच्चों को पढ़ाने का संकल्प लिया। वे ब्रेल लिपि और स्मार्ट क्लास के माध्यम से बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं, जो उनकी काबिलियत और समर्पण का प्रमाण है।
18 सालों से दे रहे हैं सेवा
आज के समय में भी नेत्रहीन होना किसी अभिशाप से काम नहीं है। भले ही सामान आकार को लेकर समाज में जन जागरूकता फैलाया जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री ने नेत्रहीन और मूकबधिर जैसे दिव्यांगों को दिव्य अंग की संज्ञा दी है। इसके बावजूद भी दिव्यांगो को संघर्ष पथ पर चल कर खुद की काबिलियत को साबित करना पड़ रहा है। बावजूद इसके शिक्षक पिछले 18 सालों से स्कूल में सेवाएं देकर बच्चों को शिक्षित कर उनके जीवन को रोशन करने और भविष्य को संवारने का काम कर रहे हैं।
देवेंद्र कुमार चंद्रा के पढ़ाए छात्र देशभर के अलग-अलग क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यह बात उनकों बहुत गौरवान्वित करती है, कि उनकी मेहनत कहीं जाया नहीं हो रही है। बल्कि उनके पढ़ाए बच्चे आज देशभर में अपना नाम रोशन कर रहे हैं। भले ही ईश्वर ने असहाय बनाकर भेजा है, किंतु ऐसे दिव्यांग बच्चों के हौसलों में मजबूत जान देकर भेजा है। जिससे ये सभी छात्र नामुमकिन को भी, मुमकिन बना रहे हैं।