रायपुर । छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सबसे प्राचीन और विशाल शिवालय बुढ़ेश्वर महादेव मंदिर में बाबा बुढ़ेश्वरनाथ चंद्रशेखर स्वरूप धारण कर विवाह रचाएंगे। इसे हेतु पूरे मंदिर को भव्य वैवाहिक स्थल के रूप में मंडप का स्वरूप दिया जा रहा है। इसके लिए तैयारियां जोर-जोर से प्रारंभ हो गई है।
रायपुर पुष्टिकर समाज के मुख्य ट्रस्टी चंद्र प्रकाश व्यास ने बताया कि बुढ़ेश्वर महादेव मंदिर लगभग 400 वर्ष प्राचीन है और यहां पर स्वयंभू शिवलिंग है जिसके दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इसका संचालन प्राचीन काल से रायपुर पुष्टिकर समाज द्वारा किया जा रहा है उन्होंने बताया कि महाशिवरात्रि पर्व के लिए तैयारी मंदिर परिसर में जोरों से चल रही है पूरे शिवालय को एक वैवाहिक मंडप का स्वरूप दिया जा रहा है जिसमें भगवान भोलेनाथ की बारात का दृश्य मंदिर के बाहर स्थल में देखने को मिलेगा वहीं मंदिर के गर्भ गृह को वैवाहिक वेदी का स्वरूप दिया जा रहा है जहां पर भगवान शिव पार्वती फेरे लेते हुए नजर आएंगे और सभी देवता गण उन पर पुष्प वर्षा करते हुए दिखेंगे।
प्रबंधक ट्रस्टी श्रीमती विजयलक्ष्मी बोहरा ने बताया कि महाशिवरात्रि के आयोजन के लिए समाज के युवाओं की पूरी टीम पिछले 10 दिनों से सक्रिय है। 8 मार्च महाशिवरात्रि के दिन प्रातः 4:45 बजे भस्म आरती पंचामृत अभिषेक किया जाएगा तत्पश्चात प्रातः 7:00 बजे से आम भक्तगण जलाभिषेक कर सकेंगे उसके बाद दोपहर 12:00 बजे भगवान भोलेनाथ को राजभोग अर्पित किया जाएगा उसके बाद शाम 4:00 बजे से भगवान भोलेनाथ के चंद्रशेखर स्वरूप के दर्शन प्रारंभ होंगे जो देर रात्रि तक चलेंगे उसके पश्चात रात्रि 12:00 बजे से महानिशा पूजा का आयोजन भी किया गया है।
क्या है भगवान भोलेनाथ का चंद्रशेखर स्वरूप
भगवान शिव के विवाह का प्रसंग है। पार्वती की माता मैना के भीतर अहंकार था। भगवान शिव इस अहंकार को नष्ट करना चाहते हैं इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु और ब्रह्माजी से कहा- आप दोनों मेरी आज्ञा से अलग-अलग गिरिराज के द्वार पर पहुंचिए। शिवजी की आज्ञा मानकर भगवान विष्णु सबसे पहले हिमवान के द्वार पर पधारे। मैना (पार्वतीजी की माता) ने शुभ आरती सजाई और उनके साथ की स्त्रियां उत्तम मंगलगीत गाने लगीं। सुंदर हाथों में सोने की थाल शोभित है, इस प्रकार मैना हर्ष के साथ शिवजी का परछन करने चलीं। जब मैना ने विष्णु के अलौकिक रूप को देखा तो प्रसन्न होकर नारद जी से पूछा है- क्या ये ही मेरी शिवा के शिव हैं?
तब नारद जी बोले, ‘‘नहीं, ये तो भगवान श्री हरि हैं। पार्वती के पति तो और भी अलौकिक हैं। उनकी शोभा का वर्णन नहीं हो सकता।’’
इस प्रकार एक-एक देवता आ रहे हैं, मैना उनका परिचय पूछती हैं और नारद जी उनको शिव का सेवक बताते हैं। फिर उसी समय भगवान शिव अपने शिवगणों के साथ पधारे हैं। सभी विचित्र वेश-भूषा धारण किए हुए हैं। कुछ के मुख ही नहीं हैं और कुछ के मुख ही मुख हैं। उनके बीच में भगवान शिव अपने नाग के साथ पधारे हैं। शिवजी से द्वार पर शगुन मांगा गया है। बाबा ने पूछा कि शगुन क्या होता है?
किसी ने कहा कि आप अपनी कोई प्रिय वस्तु दान में दीजिए। बाबा ने अपने गले से सर्प उतारा और उस स्त्री के हाथ में रख दिया जो शगुन मांग रही थी। वहीं मूर्छित हो गई। इसके बाद जब महादेवजी को भयानक भेस में देखा तब तो स्त्रियों के मन में भारी भय उत्पन्न हो गया। डर के मारे भागकर वे घर में घुस गईं और शिवजी जहां जनवासा था, वहां चले गए। कुछ डर के मारे कन्या पक्ष (मैना जी) वाले मूर्छित हो गए। जब मैना जी को होश आया तो रोते हुए कहा- चाहे कुछ भी हो जाए मैं इस भेस में अपनी बेटी का विवाह शिव से नहीं कर सकती हूं।
उन्होंने पार्वती से कहा- मैं तुम्हें लेकर पहाड़ से गिर पड़ूंगी, आग में जल जाऊंगी या समुद्र में कूद पड़ूगी। चाहे घर उजड़ जाए और संसार भर में अपकीर्ति फैल जाए, पर जीते जी मैं इससे तुम्हारा विवाह नहीं करूंगी।
नारद जी को भी बहुत सुनाया। मैंने नारद का क्या बिगाड़ा था जिन्होंने पार्वती को ऐसा उपदेश दिया कि उसने बावले वर के लिए तप किया। सचमुच उनको न किसी का मोह है, न माया, न उनके धन है, न घर है। यह सब सुनकर पार्वती अपनी मां से बोली- हे माता! कलंक मत लो, रोना छोड़ो, यह अवसर विषाद करने का नहीं है। मेरे भाग्य में जो दुख-सुख लिखा है, उसे मैं जहां जाऊंगी, वहीं पाऊंगी।
ऐसा कह कर पार्वती शिव के पास गई और उन्होंने निवेदन किया हे भोले नाथ! मुझे सभी रूप और सभी वेश में स्वीकार हो। लेकिन प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि उनका दामाद सुंदर हो।
तभी वहां विष्णु जी आ जाते हैं और कहते हैं पार्वती जी! आप चिंता मत कीजिए। आज जो शिव का रूप बनेगा उसे देखकर सभी दंग रह जाएंगे। आप यह जिम्मेदारी मुझ पर छोड़िए। भगवान विष्णु ने भगवान शिव का सुंदर शृंगार किया और सुंदर वस्त्र पहनाए। करोड़ों कामदेव को लज्जित करने वाला रूप बनाया शिव का। शिव के इस रूप को भगवान विष्णु ने चंद्रशेखर नाम दिया।