

कोरबा//
नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन के जिले में स्थापित कोरबा सुपर थर्मल पॉवर प्लांट जहा विद्युत उत्पादन हेतु प्रयुक्त होने वाले कोयले की उत्सर्जित राख का निपटान प्रबंधन सदैव ही चिंताजनक सुर्खियों में रहा हैं। हालांकि प्रबंधन ने राख की भीषण परिणीती से आम जनजीवन को बचाये रखने के लिये आधुनिकतम तकनीकी विशेषताओ के साथ विशाल राखड़ बाँध को संयंत्र एवं जन आबादी से दूर स्थापित कर रखे हैं, किंतु उनका यह प्रबंधन कारगार नहीं हो पा रहा। मोटे-मोटे पाइपों की लाइन बिछाकर संयंत्र से उत्सर्जित राख को पानी में घोलकर भारी हवा के दबाव के साथ संयंत्र के उत्सर्जित राख को राखड़ बाँध तक पहुंचाए जाने की व्यवस्था सुनिश्चित हैं, किंतु दुखद यह हैं की युक्तायुक्त प्रबंधन के अभाव में यह राख मार्ग में ही मोटे पाइप को तोड़ बाहर निकलकर राखड़ का सैलाब फैला देती हैं, और यदि यह राख गंतव्य राखड़ बाँध तक पहुंच भी जाती हैं तो बाँध के तट को तोड़कर बाहर निकल भागती हैं।

सुनिश्चित प्रबंधन के अधीन यह व्यवस्था होती हैं की बाँध के अंदर पानी में घुली कीचड़नुमा राख बाँध की तलहटी में बैठ जाती हैं और ऊपर जमे पानी को एक विशेष प्रकार से निर्मित कुओ के रास्ते छानकर बाहर नदी-नालो में प्रवाहित कर दिया जाता हैं। किंतु यहां सर्वाधिक दुखद पहलु यह हैं की राखड़ को पानी की ऊपरी सतह से ढककर रखा जाता हैं, ताकि वह उड़कर आसपास की आबादी को हानि न पहुंचा सके। किंतु धरातलीय स्तर पर यह प्रबंधन क्रमानुसार संचालित होने की बजाय अनेक प्रकार से बाधित होता हैं, परिणामतः सीमेंट और टेलकम पाउडर के रूप में परिवर्तित यह राखड़ हवा के थोड़े से दबाव में ही उड़ कर अँधेरे के गुबार में परिवर्तित हो जाती हैं। यह सारा क्रम यहां अब नागरिक अभिशाप बन चुका हैं और इसके दुष्प्रभाव से प्रभावित विशाल आबादी कराह उठती हैं। इस विसंगतिपूर्ण परिणीती को भोगने के कष्ट से मुक्ति हेतु विचलित और दिग्भ्रमित आबादी राहत उपाय तलाशने में असफल हो जाती हैं, तब उफनता हैं असंतोष। यह भी निर्विवाद रूप से सत्य हैं की आज बिजली बिना कुछ नहीं और बिजली उत्पादित करने के लिए वर्षो पूर्व स्थापित किये गए उपक्रम बूढ़े और निकम्मे हो असफल साबित हो चुके हैं। मगर विकल्प के अभाव में यह सब कुछ भोगना ही पड़ रहा हैं। हां यहां यह किया जा सकता हैं की बाँध के अंदर पहुंची राखड़ हवा के झोको से उड़ न पाए। इसके लिये स्थापित और उपयुक्त नियम और उपायों में कोई कोताही न हो। मगर यह कोताही यदा-कदा ही नहीं निरंतर परंपरा के रूप में परिवर्तित हो चुकी हैं। इसके विसंगति पूर्ण परिणीती पर तो भले ही नियंत्रण ना पाया जा सके, पर कृत्तिम उपायों को प्रभावी बनाया जा सकता हैं। असंतोष की जड़ में प्रमुख बात यही समाहित हैं। विस्तृत क्रियान्वयन पर समीक्षा के साथ-साथ अब वर्तमान अवरोध पर चिंतनयुक्त हैं।
फिलहाल एनटीपीसी धनरास राखड़ बांध से लगातार उड़ रही राख से त्रस्त ग्राम पंचायत धनरास के ग्रामीणों ने 6 अप्रैल से अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू कर दिया है। आंदोलन के पहले दिन ही राखड़ ले जा रहे वाहनों की लंबी कतार लग गई और राखड़ बांध क्षेत्र का कार्य पूरी तरह ठप्प हो गया। ग्रामीणों की यह नाराजगी बीते छह महीनों से चल रही तीन प्रमुख मांगों को लेकर है, जिनमें रोजगार, मजदूरी दर में वृद्धि और राखड़ डस्ट क्षतिपूर्ति प्रमुख हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि उन्होंने कई बार आवेदन देकर और आंदोलन कर अपनी समस्याएं उठाई हैं, लेकिन एनटीपीसी प्रबंधन और प्रशासन द्वारा अब तक केवल आश्वासन ही दिया गया है।
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो आंदोलन को और उग्र किया जाएगा। साथ ही प्रशासन से शीघ्र हस्तक्षेप करने अपील की गई है।