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दुनिया की कोई ताकत हमें तब-तक आपको सफलता नहीं दिला सकती, जब तक कि आपके भीतर खुद से सफलता हो पाने की इच्छा और जिद न आ जाए. – डॉ. संजय गुप्ता
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जीवन में सफल होने के लिए आपको सबको सुनने की आदत तो होनी चाहिए, लेकिन करना वही चाहिए जो आपके मन को बेहतर लगे- डॉ. संजय गुप्ता
दीपका – कोरबा//
आज दिन-प्रतिदिन बढ़ती प्रतिस्पर्धा एवं तनाव भरी जिंदगी में विद्यार्थियों को मानसिक रूप से स्वस्थ व प्रसन्न रहना अतिआवश्यक है । लेकिन जैसे-जैसे परीक्षा नजदीक आती है विद्यार्थियों में मानसिक दबाव बढ़ते जाता है । वर्षभर नियमित व अनुशासित तथा समर्पित होकर भी हम परीक्षा की तैयारी करें तो भी परीक्षा के दिनों में हम पर मानसिक दबाव व तनाव अवश्य होता है । विद्यार्थियों के मन में विभिन्न प्रकार के प्रश्न उठने लगते हैं और वे सबसे ज्यादा अपने भविष्य के प्रति चिंतित होते हैं। ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब प्रति सप्ताह खासखबर डॉट न्यूज़ में देंगें क्षेत्र के ख्यातिलब्ध शिक्षाविद डॉ. संजय गुप्ता
1 – लोकतंत्र में वोट का क्या और कितना महत्व है? अभी युवा होती पीढ़ियों को इसका महत्व कैसे समझाया जाए?
अभिनव देवांगन, दीपका
डॉ संजय गुप्ता: – एक अच्छे लोकतंत्र की स्थापना के लिए एक स्वस्थ मतदान का होना अति आवश्यक है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा प्रत्येक वोट बहुमूल्य होता है ।बहुत कीमती होता है। हमें कभी भी अपने वोट को किसी प्रलोभन में आकर नहीं बेचना चाहिए ।आज की युवा पीढ़ी को यह बात अवश्य समझना चाहिए कि यदि वह एक अच्छी शिक्षा, अच्छा रोजगार, एक अच्छा राष्ट्र ,समृद्ध और विकसित भारत देखना चाहते हैं ,तो अपने वोट के महत्व को समझें और किसी अच्छे ईमानदार दल को ही अपना वोट दें ।अपने मताधिकार का अवश्य प्रयोग करें ।लोकतंत्र के इस महान उत्सव में स्वयं को सम्मिलित कर अपने वोट को देकर अपना फर्ज अवश्य अदा करें ।वोट अवश्य दें ,मतदान अवश्य करें।
2 – किसी भी संस्था में यदि कर्मचारियों में आपसी मतभेद है तो उसे संस्था प्रमुख को क्या करना चाहिए? और उसे संस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है?
रीना श्रीवास, बिलासपुर
डॉ संजय गुप्ता: – किसी भी संस्था में यदि कर्मचारियों में आपसी मतभेद है तो वह उस संस्था की उन्नति में हमेशा अवरोध उत्पन्न करेगा क्योंकि कर्मचारियों की आपसी मतभेद के कारण हम किसी भी काम में गुणवत्ता नहीं दे पाएंगे। हम अपनी एक अलग पहचान नहीं बना पाएंगे। तो सर्वप्रथम तो उस संस्था के प्रमुख को इसके कारणों को जानकर उसे दूर कर ने का प्रयास करना चाहिए ।और कर्मचारियों को समझाना चाहिए कि हम एक अच्छे संबंध बनाकर, अच्छे सामंजस्य के साथ इस संस्था के लिए समर्पित होकर कार्य करें। संस्था प्रमुख को इसके जड़ तक पहुंच कर आपसी मतभेद को अवश्य दूर करना चाहिए। किसी भी संस्था में कोई एक व्यक्ति ऐसा होता है जो संस्था के अन्य कर्मचारियों को दिग्भ्रमित करता है ,भड़कता है ।ऐसे नासूर को उखाड़ कर फेंकना ही संस्था के हित में होता है।
3 – किसी भी संस्था से यदि अच्छे व काबिल टैलेंटेड व्यक्ति स्विच करते हैं या उस संस्था में अक्सर अच्छे टैलेंट का पलायन हो जाता है तो इसके क्या कारण हो सकते हैं?
आकृति मेहरा, भिलाई
डॉ संजय गुप्ता: – यदि किसी संस्था से अच्छे व काबिल प्रतिभा का पलायन होता है तो यह बहुत सोचनीय विषय है। हमें तत्काल इसके कारणों को जानने का प्रयास करना चाहिए। एक अच्छी प्रतिभा के पलायन के वैसे कई कारण हो सकते हैं। जैसे – उस प्रतिभा को उसे संस्था से संतुष्टिप्रद सुविधा नहीं मिलती हो।वह अपने पर्सनल व प्रोफेशनल लाइफ में संस्था के कार्य दबाव के कारण सामंजस्य या संतुलन स्थापित नहीं कर पाता हो ,उस संस्था में कोई ऐसा व्यक्ति हो जो उसे मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता हो ,इत्यादि कई कारण हो सकते हैं ।या उस व्यक्ति को उस संस्था से भी कोई अच्छा अवसर मिल जाता हो ।अधिकांश संस्था में यदि वरिष्ठ व सीनियर प्रतिभा पलायन करते हैं तो यह उस संस्था के नीव के हिलने के समान होता है। पुरानी प्रतिभाओं को पुराने कर्मचारियों को हमें बहुत ही सम्मान के साथ सहेज कर रखना चाहिए ।साथ ही उनके सुख सुविधाओं व पारिवारिक समस्याओं को भी हमें समझने का प्रयास करना चाहिए ।आखिर वह हमारे परिवार के सदस्य की तरह होते हैं। उन्हें को देखकर अन्य प्रतिभाएं प्रभावित होकर हमें हमारी संस्था को ज्वाइन करते हैं ।और यह बहुत बड़ा उदाहरण बनता है ।पुरानी प्रतिभाओं का हमें हमेशा सम्मान करना चाहिए तभी नई प्रतिभा हमारे संस्था में कार्य करने को उत्सुक रहेंगे और हमारी संस्था निरंतर उन्नति को प्राप्त करेगी।
4 -विद्यार्थियों को पुस्तकीय ज्ञान के अलावा बाह्य ज्ञान देने हेतु स्कूल को क्या प्रयास करना चाहिए ?इससे विद्यार्थियों को क्या लाभ होते हैं?
रोहिणी प्रजापति दीपका
डॉ संजय गुप्ता: – विद्यालय को चाहिए कि विद्यार्थियों को न सिर्फ कक्षा में विभाजित विभिन्न कालखंडों में केवल पुस्तकीय ज्ञान दें अपितु पुस्तकों में पढ़ने वाले ज्ञान को जिंदगी में उतारने हेतु प्रायोगिक ज्ञान पर भी बल दें ।समय पर उन्हें विभिन्न स्थानों का भ्रमण कराएं। आसपास स्थित उद्योग ,बैंक, म्यूजियम, पर्यटन स्थल ,अस्पताल, अच्छे शिक्षण संस्थान, गांव के मध्य लगने वाले हाट या बाजार इत्यादि का भ्रमण करा कर हम उनके ज्ञान को और संपुष्ट कर सकते हैं ।हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विद्यार्थी पढ़े हुए ज्ञान से ज्यादा सीखे हुए ज्ञान को अमल करता है। जो उसको जिंदगी भर याद रहता है।
5 – क्या विद्यार्थियों को अधिकांश समय अपने पेरेंट्स के साथ व्यतीत करना चाहिए? इससे उन्हें क्या फायदे होते हो सकते हैं? इसके क्या सकारात्मक प्रभाव हमें देखने को मिलेंगे?
कल्याण सिंह(राज आरमोर) बुंदेली
डॉ संजय गुप्ता: – यह हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारी जिंदगी में सर्वप्रथम गुरु हमारे माता-पिता ही होते हैं। हमें उनके एहसानों को जिंदगी भर नहीं भूलना चाहिए। हमें अधिकांश समय अपने माता-पिता के मध्य ही गुजारना चाहिए। आज के इस तकनीकी दुनिया में शायद हम अपने परिवार से दूर होते जा रहे हैं। हमारी दुनिया मोबाइल के 4 इंच के स्क्रीन में ही सिमट कर रह गई है। जबकि माता-पिता के सानिध्य में हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। यदि हमें जिंदगी में सफलता प्राप्त करनी है, सद्मार्ग में चलना है ,तो माता-पिता की छत्रछाया से हमें कभी दूर नहीं होना चाहिए ।हम उनसे दूर भी रहते हैं तो माता-पिता का आशीर्वाद साए की तरह हमारे पास रहता ही है। यदि हम संस्कार व अनुशासन के पथ पर चलना चाहते हैं, तो माता-पिता का सानिध्य हमें अवश्य प्राप्त करना चाहिए ।हमें माता-पिता के साथ या उनके पास बैठकर अधिकांश समय व्यतीत करना चाहिए। अपनी समस्याओं को, अपनी व्यथाओं को, अपनी शंकाओं को अपनी आशंकाओं को माता-पिता के समक्ष हमें अवश्य व्यक्त करना चाहिए ।क्योंकि वही हमारे जीवन के प्रथम गुरु ,वही हमारे जीवन के प्रथम मित्र होते हैं ।वह हमारे लिए धरती में जीवित और साक्षात ईश्वर होते हैं। हमें अपने माता-पिता में ईश्वर का दर्शन पल प्रतिपल करना चाहिए। भला एक प्राणी ईश्वर से कैसे दूर हो सकता है।