श्वेत वस्त्र धारी विद्यार्थियों ने एक से बढ़कर एक कलाबाजी दिखाकर लोगों को किया दांतों तले उंगली दबाने में मजबूर
इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में मनाया गया गुरु घासीदास जयंती
दीपका – कोरबा //
छत्तीसगढ़ मे संत घासीदास जी का जन्म हुआ औऱ वहाँ पर उन्होंने सतनाम पंथ का प्रचार तथा प्रसार किया। गुरू घासीदास का जन्म 1756 में बलौदा बाजार जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब और साधारण परिवार में पैदा हुए थे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात किया। जिसका असर आज तक दिखाई पड़ रहा है।छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले के गिरौदपुरी गांव में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरू घासीदास जी सतनाम पंथ जिसे आम बोल चाल में सतनामी समाज कहा जाता है, के प्रवर्तक थे। गुरूजी ने भंडारपुरी में जहाँ अपने पंथ स्थल को संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति के साथ दिया था, वहाँ गुरूजी के वंशज आज भी निवासरत है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिवाद को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिया। इनसे समाज के लोग बहुत ही प्रभावित थे।
इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में महान संत गुरु घासीदास के सम्मान में विद्यार्थियों द्वारा शानदार पंथी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। विद्यालय के हिंदी विभाग अध्यक्ष श्री हेमलाल श्रीवास ने संत शिरोमणि श्री गुरु घासीदास को समाज को दिए गए संदेश का संक्षेप में वाचन किया, साथ ही विस्तार से गुरु घासीदास जी के चरित्र का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि संत शिरोमणि श्री गुरु घासीदास जी ने सतनाम पंथ की स्थापना किस उद्देश्य से की थी। सतनाम अर्थात सत्य के मार्ग पर चलने वाला एक ऐसा पंथ जो किसी भी परिस्थिति में सत्य की राह से डिगेगा नहीं ।हमेशा शाकाहार एवं सत्य के व्रत का पालन करेगा। इंडस पब्लिक स्कूल दीपका के विद्यार्थियों ने विभिन्न कलाकृतियों के माध्यम से भी श्री गुरु घासीदास जी को सम्मान अर्पित किया। विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत पंथी नृत्य का सभी ने भरपूर आनंद उठाया एवं एक विशेष लय एवं ताल से बंधे धुन पर स्वयं को झूमने से कोई रोक नहीं पाया। श्वेत वस्त्रों में सभी विद्यार्थी खास प्रभाव डाल रहे थे।पंथी नृत्य का प्रदर्शन करते समय विद्यार्थियों ने हैरतअंगेज कलाबाजियों का भी प्रदर्शन किया।
पंथी नृत्य दल को विशेष पुरस्कार से विद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता के द्वारा पुरस्कृत किया गया। डॉ संजय गुप्ता ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा किगुरू घासीदास जातियों में भेदभाव व समाज में भाईचारे के अभाव को देखकर बहुत दुखी थे। वे लगातार प्रयास करते रहे कि समाज को इससे मुक्ति दिलाई जाए। लेकिन उन्हें इसका कोई हल दिखाई नहीं देता था। वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड पर समाधि लगाये इस बीच गुरूघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की।गुरू घासीदास बाबाजी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। सत्गुरू घासीदास जी की सात शिक्षाएँ हैं-सतनाम् पर विश्वास रखना। जीव हत्या नहीं करना। मांसाहार नहीं करना।चोरी, जुआ से दूर रहना।नशा सेवन नहीं करना। जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना। व्यभिचार नहीं करना।सतनामी संप्रदाय, भारत में कई समूहों में से एक है जिसने सतनाम (संस्कृत शब्द सत्यानामन, ” वह जिसका नाम सत्य है “) के रूप में भगवान की समझ के इर्द-गिर्द रैली करके राजनीतिक और धार्मिक प्राधिकरण को चुनौती दी है।