उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर गुरुवार मध्य रात्रि 12 बजे नागपंचमी के पर्व पर दर्शनार्थियों के लिए खोला जाएगा। परंपरा अनुसार, साल में एक बार ही इस मंदिर को नागपंचमी पर खोला जाता है। मंदिर मूर्ति शिल्प व शास्त्र की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मंदिर में भगवान नागचंद्रेश्वर की 2 मूर्तियां है। अग्रभाग में 7 फन से सुशोभित सर्पासन पर विराजित भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित है।
नेपाल से उज्जैन लाई गई थी मूर्तियां
मान्यता है 11 वीं शताब्दी में बनी इस मूर्ति को नेपाल से उज्जैन लाया गया था। मराठाकाल में मंदिर के जीर्णोद्धार के समय इसे नागचंद्रेश्वर मंदिर के अग्रभाग में स्थापित किया गया। नागपंचमी पर भक्त सबसे पहले इसी प्रतिमा के दर्शन करते हैं। इसके बाद गर्भगृह में शिवलिंग रूप में विराजित भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर गंतव्य को रवाना होते हैं।
विश्व का एक मात्र विग्रह अन्यत्र देखने को नहीं मिलता
नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजन व्यवस्था परंपरा अनुसार, महानिर्वाणी अखाड़े के अधीन है। अखाड़े के गादीपति महंत विनीत गिरि महाराज बताते हैं मंदिर के अग्रभाग में स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर की मूर्ति अत्यंत दुर्लभ है। यह एक मात्र श्री विग्रह है, जिसमें सर्पासन पर भगवान शिव पार्वती, गणेश, कार्तिकेय सहित पूरा शिव परिवार विराजित है। भगवान शिव का वाहन नंदी और माता पार्वती का वाहन सिंह भी दृष्टिगोचर होते हैं। ऊपर सूर्य व चंद्रमा भी अंकित हैं। भगवान शिव के गले में भुजंग लिपटे हुए हैं। इस प्रकार की मूर्ति विश्व में दूसरी देखने को नहीं मिलती है।
मूर्ति शिल्प की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान
विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्ववेत्ता डॉ. रमण सोलंकी ने बताया कि महाकालेश्वर के शिखर पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर शिल्प व शास्त्र की दृष्टि से समृद्ध एक महत्वपूर्ण स्थान है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर प्रथम व द्वितीय तल पर अनेकों ऐसी मूर्तियां हैं, जो बेजोड़ हैं। विश्व में ऐसी मूर्तियां दूसरी कहीं भी देखने को नहीं मिलती हैं। नागचंद्रेश्वर के रूप में पूजित सर्पासन पर शिव परिवार का अंकन अद्भुत व अकल्पनीय है। शिवलिंग रूप में नागचंद्रेश्वर का पूजन मालवा की प्रचलित परंपरा है।