उत्तरकाशी । उत्तरकाशी की निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में 17 दिन से फंसे 41 श्रमिकों के लिए मंगलवार का दिन खुशखबरी लेकर आया है। रैट माइनर्स की टीम ने मैन्युअल ड्रिलिंग पूरी कर दी है। श्रमिकों तक पाइप पहुंच चुका है। पाइप वेल्डिंग किया जा रहा है, जिससे मजदूरों को कोई क्षति न पहुंचे। सुरंग के बाहर एंबुलेंस व डाक्टरों की टीम तैनात है। वहीं, एक एंबुलेंस अंदर भी गई है। श्रमिकों को सुरंग से निकालते ही चिन्यालीसौड़ अस्पताल ले जाया जाएगा।
सिलक्यारा बचाव अभियान में लगातार विफल होते विकल्पों के बीच सोमवार को छह सदस्यीय रैट माइनर्स की टीम को तैनात किया गया था। ऑगर मशीन के फेल होने के बाद हाथ से खोदाई कराने का फैसला किया गया। श्रमिकों की कुशल टीम रैट होल माइनिंग पद्धति का इस्तेमाल करके हाथ से मलबा हटाने का काम कर रही थी।
क्या हुआ था?
दरअसल, 12 नवंबर की अल सुबह 05.30 बजे सिलक्यारा से बड़कोट के बीच बन रही निर्माणाधीन सुरंग में धंसाव हो गया। सुरंग के सिल्क्यारा हिस्से में 60 मीटर की दूरी में मलबा गिरने के कारण यह घटना हुई। 41 श्रमिक सुरंग के अंदर सिलक्यारा पोर्टल से 260 मीटर से 265 मीटर अंदर रिप्रोफाइलिंग का काम कर रहे थे, तभी सिलक्यारा पोर्टल से 205 मीटर से 260 मीटर की दूरी पर मिट्टी का धंसाव हुआ और सभी 41 श्रमिक अंदर फंस गए।
घटना की सूचना तुरंत राज्य और केंद्र सरकार की सभी संबंधित एजेंसियों को दी गई और उपलब्ध पाइपों के जरिए सुरंग में फंसे हुए श्रमिकों को ऑक्सीजन, पानी, बिजली, पैक भोजन की आपूर्ति के साथ बचाव कार्य शुरू किया गया। फंसे हुए श्रमिकों से वॉकी-टॉकी के माध्यम से भी संचार स्थापित किया गया है। श्रमिकों को शीघ्र बचाव के लिए कई बीते 16 दिनों में कई उपाय किए गए हैं।
क्या है रैट होल माइनिंग?
रैट-होल माइनिंग एक ऐसी पद्धति है जिसमें कुछ खनिक कोयला निकालने के लिए संकरे बिलों में जाते हैं। हालांकि, यह पद्धति विवादित और गैर-कानूनी भी है। दरअसल, यह प्रथा पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय में प्रचलित थी। खनिक गड्ढे खोदकर चार फीट चौड़ाई वाले उन संकरे गड्ढों में उतरते थे जो, जहां केवल एक व्यक्ति की जगह होती है। वे बांस की सीढ़ियों और रस्सियों का इस्तेमाल करके नीचे उतरते थे, फिर गैंती, फावड़े और टोकरियों आदि का उपयोग करके मैन्युअल रूप से कोयला निकालते थे।
विवादित क्यों है यह पद्धति?
इस तरीके से होने वाली खुदाई से सुरक्षा खतरे उत्पन्न हो गए। ऐसा इसलिए क्योंकि खनिक सुरक्षा उपाय किए बिना गड्ढे में उतर जाते थे और कई बार हादसों का शिकार हो जाते थे। ऐसे कई मामले भी आए जहां बरसात में रैट होल माइनिंग के कारण खनन क्षेत्रों में पानी भर गया, जिसके चलते श्रमिकों की जानें गईं। यही कारण है कि साल 2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने मेघालय में इस पद्धति से होने वाली खुदाई पर पाबंदी लगा दिया।
एक विशेषज्ञ ने बताया कि एक आदमी खुदाई करता है, दूसरा मलबा इकट्ठा करता है और तीसरा उसे बाहर निकालने के लिए ट्रॉली पर रखता है। विशेषज्ञ मैन्युअली मलबे को हटाने के लिए 800 मिमी पाइप के अंदर काम कर रहे हैं। कहा गया कि इस दौरान एक फावड़ा और अन्य विशेष उपकरण का उपयोग किया जा रहा है। ऑक्सीजन के लिए एक ब्लोअर भी लगा है। इस प्रकार की ड्रिलिंग काफी मेहनत वाला काम है और खुदाई करने वालों को बारी-बारी से खुदाई करनी पड़ती है। हालांकि, ये खनिक ऐसे कामों के लिए कुशल हैं।